लेष्याध्यान द्वारा आदतों का परिष्कार
Abstract
जैनदर्शन का पारिभाषिक शब्द है-लेश्या, जिसका अर्थ है-विशिष्ट रंग वाले पुद्गल द्रव्य के संसर्ग से होने वाला जीव का परिणाम या चेतना का स्तर। लेश्या एक ऐसा चैतन्य स्तर है, जहाँ पहुँचने पर व्यक्तित्व का रूपान्तरण होता है। लेश्या अच्छी या बुरी जैसी होगी, उसके अनुसार व्यक्ति बदल जायेगा। लेश्या के दो भेद हैं-द्रव्यलेश्या और भावलेश्या अर्थात् पौद्गलिक लेश्या और आत्मिक लेश्या। वह निरन्तर बदलती रहती है। लेश्या प्राणी के आभामंडल का नियामक तत्व है। आभामंडल में कभी काला, कभी लाल, कभी पीला, कभी नीला, कभी सफेद रंग उभर आता है। भावों के अनुरूप रंग बदलते रहते हैं। उत्तराध्ययन में छह कर्मलेश्या और उससे संबंधित भाव आदि का विस्तृत विवरण मिलता है। लेश्या के छह प्रकार हैं
Downloads
Published
2022-04-25