नियतिवाद से प्रभावित भगवतीचरण वर्मा के उपन्यास

Authors

  • डॉ. राजेश श्रीवास विभागाध्यक्ष, हिंदी, सेठ फूलचंद अग्रवाल स्मृति महाविद्यालय, नवापारा (राजिम) रायपुर, छत्तीसगढ़

Abstract

भगवती चरण वर्मा न केवल नियतिवादी दर्शन का समर्थन करते हैं, बल्कि उसे स्वस्थ दृष्टिकोण मानते हैं और वे स्वंय स्वीकारते हैं। इसलिये उनके उपन्यास साहित्य में शुरू से अंत तक ‘नियतिवाद‘ खुलकर सामने आया है। ‘नियतिवाद‘ जिन मुद्दों पर प्रमुख रूप से विचार करता है, उन्हें वर्मा जी एक अदृश्य शक्ति की प्रेरणा मानते हैं, जिसके पथ के प्रत्येक कदम और प्रत्येक मोड़ पूर्व निर्धारित हैं, उसमें कहीं कोई परिवर्तन संभव नहीं है।

वास्वत में वर्मा जी के उपन्यासों के लगभग सभी पात्र परिस्थिति से पराजित हैं। अतः मनुष्य की इच्छाओं का अंतिम परिणाम दुःख-ही-दुःख है। यह धारणा निराशावाद को जन्म देती है। इस निराशा के कुहासे से बचने के लिए वर्मा जी ने ‘गीता‘ के निष्काम कर्मवाद का अवलंबन लिया है। यदि वर्मा जी ने अपनी विचारधारा को उदात्त न किया होता तो वह अवश्य ही मनुष्य को कुण्ठित कर अकर्मण्य बना देती और वे कर्मवाद की प्रतिष्ठा न कर पाते। अतः उन्होंने अपने साहित्य में ‘नियतिवाद‘ के साथ-ही-साथ कर्मवाद को भी प्रतिस्थापित किया है। 

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Published

2021-09-03