युवा जीवन तथा योग

Authors

  • डॉ. दीपरत्ना मासुलकर सह-प्राध्यापक, गणित, शासकीय अरण्य भारती स्नातकोत्तर महाविद्यालय बैहर, जिला-बालाघाट (म.प्र.)

Abstract

वर्तमान युग में तेजी से बदलती आधुनिक जीवनशैली ने भारतीय प्राचीन परंपराओं संस्कृती तथा मानवीय मूल्यों को लगभग समाप्त कर दिया है। युवा अधिकांश समय कम्प्यूटर, लैपटॉप और मोबाईल पर कार्य करते है, इन कारणों से शारीरिक गतिविधियां कम तथा मानसिक कार्य अधिक होता है, फलस्वरूप अधिकांश युवा मधुमेह, मोटापा, उच्चरक्तचाप, हृदयघात, कमर दर्द, आंखों में धुंधलापन इस तरह तमाम बिमारियों के शिकार हो रहे है। इसलिए उनकें व्यवहार में चिड़चिड़ापन देखा जा रहा है, और अवसाद तथा तनाव के शिकार हो रहे है। योग एक प्राचीन ज्ञान तथा विज्ञान है, जिन्होंने इसे नियमित रूप से अपने जीवन में अपनाया उनका कहना है कि योग के नियमित अभ्यास से शारीरिक, मानसिक तथा अध्यात्मिक विकास के साथ-साथ रोगप्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है, अर्थात् योग एक ऐसा साधन है, जिससे व्यक्तित्व विकास की क्षमता में वृद्धि होती है, अतः हम कह सकते है कि यह एक ऐसी उपचार प्रणाली है जो शारीरिक, मानसिक विकास तक ही सीमित नही है बल्कि योग मनुष्य जीवन का सर्वागीण विकास करने में सहायक है इस तरह प्रस्तुत आलेख में युवाओं की जीवन शैली में योग को महत्व दिया गया है। योग को युवा अपने जीवन में अपनाकर स्वयं का विकास कर सकते है। प्रस्तुत लेख युवाओं तथा विद्यार्थियों की कार्यकुशलता एवं क्षमता को विकसित करने पर आधारित है।

Published

2023-09-29