‘एक पुरुष प्रेरणा बिन्दु से निर्वेद तट तक’ उपन्यास में बिंबित नारी-चेतना

Authors

  • डॉ. संध्या पुजारी विभागाध्यक्ष शिक्षा विभाग, सांदीपनी एकेडमी, अछोटी जिला- दुर्ग (छ.ग.)

Abstract

भारतीय नारी को गृहलक्ष्मी कहा जाता है, यदि नारी सुविकसित, सुशिक्षित, सुसंस्कृत हो तो वह अपने परिवार, संतान, समाज, यहाँ तक कि अपने राष्ट्र के लिए भी वरदान है। भारतीय चिंतन में नारी को अर्धागिनी कहा गया है। यदि हम अपने राष्ट्र व समाज को उन्नति चाहते हैं तो उसके लिए यह आवश्यक है कि समाज के आधे अंग ‘‘नारी‘‘ की उन्नति के ही प्रयास किए जाएँ। शत-प्रतिशत न सही पर यह प्रयास किया जाना तो अति आवश्यक है।

हमारा भारत महान परंपराओं वाला देष है, यहाँ सृष्टि-सृजन से ही नारी को पवित्र माना गया है। “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता‘‘ अर्थात् जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं। जयशंकर प्रसाद जी ने भी अपनी रचना में कहा है

‘‘नारी ! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पदतल में,

पियूष सोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।“

परंपरा से उपन्यासकारों ने नारी को इस रूप में व्यक्त किया है... नारी पर अत्याचार एक समाजिक परंपरा बन गई है।

Downloads

Published

2021-09-03