आचार्य महाप्रज्ञ का शिक्षा दर्शन

Authors

  • डॉ. हेमलता जोशी सहायक आचार्य, जैन विश्वभारती संस्थान लाडनूं (राज.)

Abstract

मानव के विकास क्रम में शिक्षा का सबसे बड़ा योगदान है। शिक्षा ही वह साधन है जो अज्ञान रूपी तिमिर को दूर ज्ञान रूपी प्रकाश को प्रज्जवलित करने में सहायक है। मानव मस्तिष्क में छिपी हुई शक्तियां, क्षमताएं, योग्यताएं, संभावनाएं शिक्षा से ही व्यक्त होती हैं। यही मानव को पशुत्व से दिव्यत्व प्रदान करने में सहायक है। कहने का तात्पर्य है कि शिक्षा से ही मानव निम्न कोटि से उच्च कोटि का जीवन प्राप्त करता है। इसीलिए शिक्षा को विकास का सशक्त माध्यम माना गया है। प्राचीन काल से ही अनेक विद्वानों से शिक्षा पर अपनी कलम चलाई। अपने-अपने दर्शन के आधार पर शिक्षा के दर्शन को प्रस्तुत किया साथ ही शिक्षा को आवश्यक तत्त्वों से परिपूर्ण करने हेतु भी अनेक महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए। अतः यह स्पष्ट होता है कि भारतीय शिक्षा पद्धति महान ऋषि-मुनियों, दार्शनिकों, चिंतकों, विद्वानों के चिंतन-मंथन का विषय रही है। इसीलिए भारतीय साहित्य में वेद, पुराण, आगम, त्रिपिटक आदि ग्रंथों के अतिरिक्त वर्तमान साहित्य पर भी इसकी स्पष्ट छाप दिखाई देती है। वर्तमान दार्शनिकों में एक प्रमुख दार्शनिक थे आचार्य महाप्रज्ञ जिनका शिक्षा दर्शन प्राचीन और अर्वाचीन शिक्षा का समन्वित रूप है। एक ओर प्राचीन सिद्धांतों, अध्यात्म-योग पद्धति को महत्त्व दिया तो दूसरी ओर वर्तमान विज्ञान को। शिक्षा में सैद्धांतिक ज्ञान के साथ यौगिक प्रयोगों विशेषकर पे्रक्षाध्यान के अभ्यास को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जिससे सर्वांगीण व्य़िक्तत्व की परिकल्पना पूर्ण हो सके, एक आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण हो सके। प्रस्तुत लेख में आचार्य महाप्रज्ञ के शिक्षा दर्शन को प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयास किया गया है जो सुधी पाठकों के लिए उपयोगी हो सकेगा, ऐसा विश्वास है।

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Published

2021-06-15