ग्रामीण क्षेत्र के माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और शैक्षिक उपलब्धि का तुलनात्मक अध्ययन?
सार
शिक्षा के रूप में विद्यार्थी जीवन का व्यवहार ज्ञान एवं कला कौशल में वृद्धि एवं परिवर्तन किया जाता है। विल्सन एच० एफ० (1976) ने अपने अध्ययन में पाया कि विद्यार्थियों में अधिगम के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोंण एवं उसकी उच्चतम शैक्षिक उपलब्धि उनके माता-पिता और अभिभावक की उनके शैक्षिक कार्यों में हो रहे रूचि से जुड़ी हुई हैं। माध्यमिक विद्यालय में विद्यार्थियों ने कितना ज्ञान अधिग्रहित किया हंै इसका पृष्ठपोषंण शैक्षिक उपलब्धि द्वारा ही लगाया जा सकता हैं। शैक्षिक उपलब्धि उन विद्यार्थियों द्वारा अधिगम किये गये एवं प्रयोग में लाये गये ज्ञान को मापने का सर्वोत्तम साधन हैं। तथा यह उनके पारिवरिक तथा सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि पर पुर्णतया निर्भर करता है। विद्यार्थियों के नैतिकता, सामाजिक मूल्यों में गिरावट का प्रभाव शिक्षा में देखने को मिलता हैं। जिसमें मुर्त या अमुर्त रूप से विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि को प्रभावित करती हैं। विद्यार्थियों को प्रत्येक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा व तनावपूर्ण प्रस्थिति का सामना करना पड़ता हैं। इसमें सफलता हेतु आवश्यक हैं कि वह अपने व्यवहारों को शैक्षिक लक्ष्यों कीे प्राप्ति हेतु निर्मित करें। अतः विद्यार्थियों के शैक्षिक विकास में शैक्षिक उपलब्धि, सामाजिक आर्थिक स्थिति और उससे सम्बन्धित चरों का महत्वपूर्ण स्थान हैं।
शैक्षिक उपलब्धि के संन्दर्भ में रेखा (1996) द्वारा किए गये शोधकार्यों में निष्कर्ष के रूप में पाया गया कि परिवार के सभी सदस्यों द्वारा प्रदान किया गया निर्देशन व पथ प्रदर्शन विद्यार्थियों के अच्छे शैक्षिक दृष्टिकांेण एवं शैक्षिक उपलब्धि में अपना योगदान केता हैं। उपलब्धि से तात्पर्य किसी भी क्षेत्र में अर्जित ज्ञान से नहीं हैं अपितु सामान्यतः हम उपलब्धि को शैक्षिक क्षेत्र में ही देख सकते हैं। लेकिन यह जीवन के सभी क्षेत्रों से सम्बन्धित होती हैं। अतः शैक्षिक उपलब्धि का तात्पर्य विद्यार्थियों द्वारा कक्षाकक्ष में विभिन्न विषयों में प्राप्त प्रतिफलों से नहीं है अर्थात् शैक्षिक उपलब्धि विद्यालय में कक्षाकक्ष में विद्यार्थियों के अध्ययन विषय के प्रति अर्जित शैक्षणिक ज्ञान से हैं।
ज्ञानानी (2005) ने अपने अध्ययन में पाया की माघ्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों को मिलने वाली अभिप्रेरणा तथा उनकी शैक्षिक उपलब्धि में सार्थक अंतर होता हैं। और इनके अनुसार मनुष्य को सफल विद्यार्थी बनाने में समाज का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। समान भौतिक साधनों के होते हुए भी यदि किसी विद्यार्थी को समाज का सम्पर्क नहीं मिलता तो उनका विकास न होकर पशुवत बन कर रह जाता है। आज का विकसित प्राणी सदियों की सामाजिक गतिशीलता का ही परिणाम है।